परने लगा दरार शीशे की दिवार मे, समझा था जिसको फूल,वो कांटेदार थे, करते रहे वो वार,नुकीले हथियार थे, चोट कर दी इस कदर,तार तार हो गया, नाजुक था दिवार,पहले से कमजोर हो गया, फिर बीकने लगा जो इश्क लग कर कतार मे!! यह उन का हौशला है,करते है वार वो, मै फिर भी नही मानता,हे मेरे शीतमगार वो,. चाहते तो इस कदर बढी,दवांये वेअशर हो गई, बिजली गीरा के चल दिये,है तजुर्बेकार वो, चाहतो के लहङ मे युं बिखङ कर खो गया, तरपा भी हू मै जब तब चाहत के खुमार मे!! इतना तो बेअशर है,दुआयें हैं जो इश्क की, करते रहे इंतजार और होते होते शाम हो गई, उठने लगा तुफान,उङा के न ले जाये हर खुशी, करता रहा इन्तजार और जिन्दगी गुमनाम हो गई, अपने हशरतो के भँबङ मे बेबश सा हो गया, कितने ही मर्तवा मुस्कुराया भी हूं अपने ही हार मे!! परने लगा दरार शीशे की दिवार मे