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#OpenPoetry बेहती थी खुशीयाँ जीन पनघट मे आज वहाँ स

#OpenPoetry बेहती थी खुशीयाँ जीन पनघट मे
आज वहाँ से लाशे बेह रही थी
और ना खुरेदो मेरी कुदरत को
मानो नदियाँ कुछ ऐसा कह रही थी #floods
#OpenPoetry बेहती थी खुशीयाँ जीन पनघट मे
आज वहाँ से लाशे बेह रही थी
और ना खुरेदो मेरी कुदरत को
मानो नदियाँ कुछ ऐसा कह रही थी #floods