Guddu Sharma धन्यवाद प्रधानाचार्य महोदया । रात बाकी है रात आधी है अंधियारो से भरे दिन मेरे, डटा हु में ,खड़ा हूँ मै , हौंसलो में ना कमी कोई परिंदा हु आज नही तो कल पहुच ही जाना मंजिल तक, अडिग हु चट्टान की भाँति खड्ग हु भेदन की भाँति, में ठुकराया अपनो का में मारा मेरे ही स्वपनों का , समय गवां दिया जिनके लिए असमय कर दिया गया उनके हाथों का में, सफलता असफलता हिस्सा जीवन का.. में वक़्त का मारा अपनो का , ना आस है ना पास है अब तो सब उपहास है, ना साम है ना दाम है ना दण्ड है ना कोइ भेद है, बस मेरे साथ मे ही खड़ा मेरे स्वपनों का मंजर अब ही पड़ा, रात बाकी है रात आधी है अँधियारो से भरे दिन मेरे , पस्त हो गया अब में अस्त हो गया .... नज़र दुर तक वीरानी सी ज़िंदगानी अब बेगानी सी, लेकिन एक दीपक है जो जल रहा ...अट्हास ही राह दिखाता , दिया भी है बाती भी है .. पर मिट्टी का बना पात्र अब खाली है , ............. Guddu Sharma धन्यवाद प्रधानाचार्य महोदया । रात बाकी है रात आधी है अंधियारो से भरे दिन मेरे, डटा हु में ,खड़ा हूँ मै , हौंसलो में ना कमी कोई परिंदा हु आज नही तो कल पहुच ही जाना मंजिल तक, अडिग हु चट्टान की भाँति