बहते दृग़म्ब बयाँ कर रहे, अन्तस् की यन्त्रणा। क्या हुआ है;क्या हुआ की,चल रही है मन्त्रणा।। देश के सशक्त-शत्रु, दुःख, ध्वंस , त्रासदी। शोणित में रज्जु सान, घुटकी में फाँस दी।। त्राहि- त्राहि रट रही हैं, मेदिनी की पीढ़ियाँ। पीढ़ियाँ ही खींच रहीं, पीढ़ियों की सीढ़ियाँ।। रीति-नीति-प्रीति फफक, कूट रहीं छातियाँ। वंचना, वहम में धँसी, वोटों की जातियाँ।। रौंद रहे अगुआ की , पौदर प्रमाण है। अंग-अंग खण्ड-खण्ड, शेष मात्र प्राण है।। धैर्यवान धैर्य-धुन में , मादल बस फोड़ते। नित्य नये अस्त्र-शस्त्र, खल-अराति छोड़ते।। अक्षरविन्यास भी , लज्जित- धिक्कारते। लेखन पर थूँक, फ़क़त, पौरुष निहारते।। पौरुष समसि का नहीं, लेखक का देखिये। मूँदकर के ज्ञान-गीत, बाजुओं को देखिये।। ✍️अनुज पण्डित ◆टिप्पणी अपेक्षित... देश की स्थिति //diksha// Ms.(P.✍️Gurjar) हिमांशु विद्रोही