गुज़रता है दिन भी अब बेवजह ही रातें है गुमसुम और धुंधली है सुबह भी अजीब है रिश्ता तेरे-मेरे दरम्यां अब नफ़रत से भी मोहब्बत बेशुमार हो गई है पहले जो था चुभता अब आदत बन गया है कांटा था कोई जो सआदत बन गया है मालूम है सबकुछ फिर भी ख़ैरियत पूछती है मुश्किलें भी मुझसे मेरी कैफ़ियत पूछती हैं... © abhishek trehan #दिन #रात #बेवजह #तेरेमुताबिक़ #manawoawaratha #उदासी #पनाह #yqdada