आखिर कौन हो तुम मेरे? पता नही मगर लगता है, कुछ तो हो..... क्या तुम मेरा अधूरा ख्वाब हो, की मेरे कुछ छिपाये हुए जज़्बात.... वो अनकहे अल्फ़ाज हो, की मेरे गीतों की आवाज़.... आखिर कौन हो तुम? क्या मेरा कोई अंश हो? या फिर मेरे जैसी ही कोई खुली हुई किताब, जिसकी कलम को स्याही ही नही.... तुम वो अहसास तो नही ना, जिसे महसूस करना मेरे बरसों का ख्वाब है.... पता नही, सुना था की कुछ रिश्तों के नाम नही होते और कुछ कहानियों में अन्जाम नही होते.... क्या तुम वही तो नहीं? सब कुछ तो पता है तुम्हारे बारे में मुझे सीवाय इसके की तुम्हारा मेरा रिश्ता क्या है... मगर, कोई तो डोर है जिससे हम दोनों जुड़ते है.... वरना यूँही न तो कभी दो रास्ते साथ में मुड़ते है। Aankhir kaun ho tum mere???