ग़ज़ल:- फ़िर एक बार तेरी तश्वीर को ************************* फ़िर एक बार तेरी तश्वीर को बनाने चला हूँ मैं अपनी रूठी तकदीर को एकबार फ़िर मनाने चला हूँ मैं.... जिसे कब से ख़्वाबों में सजा रखा था मैंने.,, आज उसे काग़ज पर दोबारा उतारने चला हूँ मै.... वो नज़ाकत, वो मासूमियत, वो आँखों की हया,, हूँ-ब-हूँ तुझे उन्हीं रंगों में निखारने चला हूँ मैं.... स्याह रात के अँधेरे में वो तेरी बातों का सिलसिला,, तेरी आँखों की उसी चमक को सजाने चला हूँ मैं.... मोहतरमा सुनो ! एक शायर की ब्रश से तुम्हारी,, हुस्न की चाँदनी को फिर से और चमकाने चला हूँ मैं....!! ©rishika khushi #NationalSimplicityDay #तश्वीर