मैं ओढ़ लुंगी माँ का आँचल मैं तुझे कोरो में छुपा लूँगी मैं हो जाऊँगी समर्पिता मैं बन जाऊँगी गृहणी ऐ मन किसी चाँद रात जो उग आएंगे केवड़े मैं सजा लुंगी लाल चूड़ी और ओढ़ लुंगी सफेद आँचल मगर एक शर्त एक सिक्का पुख्ता मैं स्वयं को नहीं दे सकती मैं कतरनों में नहीं बिक सकती आलते की सौंधी ख़ुशबू में मैं सियाही की इत्र नहीं खो सकती मैं पूर्ण हूँ ,मैं पूर्णविराम हूँ किसी बिंदी सी बिंदु नहीं सार्थक,सम्पन्न,सर्वस्वा मैं मैं ख़ुद में ख़ुदी के समान हूँ... sur... सच...