ग़ज़ल/ " कोना कहबै " ~~~~~~~~~ लोक'क शब्द चोरी क'के गीत बनेलौ ओ गीत कोना कहबै जे मानवता के दुश्मन छथि तिनका हम मित कोना कहबै ~~~~~~ जग में बैरी सघा भाई, पड़ोसीयाक बात किया मिठ ल'गै जगमें चोर'क बोलबाला छथि, सुपत्तकें तित कोना कहबै ~~~~~~~~ अनाचार बढ़ल किछ ढिठ पनामे सांच भेलय अंधविश्वास ने जेठकें मान ने छोटके आदर कहु ई रीत कोना कहबै ~~~~~~~ विद्यार्जन में कमी भ' सकैय' मुदा विद्याके कोनो सीमा नहि बिना लगाव आ बिना आत्म समर्पण के प्रीत कोना कहबै ~~~~~~~ धर्म छोड़लौं, दोसर'क खातिर सत्य कहैमें शर्म ल'गैय' मातृभूमि पर अत्याचार देखक' बहैत नोरके शीत कोना कहबै ~~~~~~~~ आंहरो लोक'क सहारा जग मे एकटा लाठी होइत अछि दोसर'क घरके इंटाक देवाल अपना घरके भित कोना कहबै ~~~~~~~~~~ मानलौं कतेको लोक इमान बेचलथि बिदेशी मुद्रामे तौलक' दुनियां किछो कहौ मुदा गामक दृष्टिमे पतित कोना कहबै ~~~~~~ईति~~~~ शब्द रचना :- गुरु दयाल यदुवंशी। मैथिली गजल / कोना कहबै (मैथिली कवि) ग़ज़ल/ " कोना कहबै " ~~~~~~~~~ लोक'क शब्द चोरी क'के गीत बनेलौ ओ गीत कोना कहबै जे मानवता के दुश्मन छथि तिनका हम मित कोना कहबै ~~~~~~ जग में बैरी सघा भाई, पड़ोसीयाक बात किया मिठ ल'गै जगमें चोर'क बोलबाला छथि, सुपत्तकें तित कोना कहबै