चिंतित क्यूँ हो नैराश्य पर प्रहार संभव है घटाटोप अंधेरे का भी उपसंहार संभव है . तुम प्रकृति के सौंदर्य के अनुगामी तो हो कुटिल दृष्टि का भी भव्य श्रंगार संभव है . निकल सूक्ष्म कूपों से बाहर भी देखिये गूढ़ विचारों से सस्ता व्यापार संभव है . विषम विशाल भले हो भय आवश्यक नही सरलता से भी जीवन का विस्तार संभव है . धीर उनसे भी बात करेगा जो मौन हैं वो जानता है कि सबसे प्यार संभव है . उपसंहार