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चिंतित क्यूँ हो नैराश्य पर प्रहार संभव है घटाटोप

चिंतित क्यूँ हो नैराश्य पर प्रहार संभव है 
घटाटोप अंधेरे का भी उपसंहार संभव है
. 
तुम प्रकृति के सौंदर्य के अनुगामी तो हो 
कुटिल दृष्टि का भी भव्य श्रंगार संभव है
. 
निकल सूक्ष्म कूपों से बाहर भी देखिये 
गूढ़ विचारों से सस्ता व्यापार संभव है
. 
विषम विशाल भले हो भय आवश्यक नही 
सरलता से भी जीवन का विस्तार संभव है
. 
धीर उनसे भी बात करेगा जो मौन हैं
वो जानता है कि सबसे प्यार संभव है
. उपसंहार
चिंतित क्यूँ हो नैराश्य पर प्रहार संभव है 
घटाटोप अंधेरे का भी उपसंहार संभव है
. 
तुम प्रकृति के सौंदर्य के अनुगामी तो हो 
कुटिल दृष्टि का भी भव्य श्रंगार संभव है
. 
निकल सूक्ष्म कूपों से बाहर भी देखिये 
गूढ़ विचारों से सस्ता व्यापार संभव है
. 
विषम विशाल भले हो भय आवश्यक नही 
सरलता से भी जीवन का विस्तार संभव है
. 
धीर उनसे भी बात करेगा जो मौन हैं
वो जानता है कि सबसे प्यार संभव है
. उपसंहार

उपसंहार