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मेरी जुबानी, ना जाने किस-किस की कहानी कहता हूं, दु

मेरी जुबानी,
ना जाने किस-किस की कहानी कहता हूं,
दुख है कि,
तुम सब की भीड़ में, स्वयं 'अकथ' रहता हूँ।
मंजिलों की,
'तलाश या चाह' तो मुझे भी है मेरे 'अवचेतन',
मैं दिशाहीन जरूर हूँ,
किन्तु सदैव मेरे पथ पर 'अथक' रहता हूँ।।

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मेरी जुबानी,
ना जाने किस-किस की कहानी कहता हूं,
दुख है कि,
तुम सब की भीड़ में, स्वयं 'अकथ' रहता हूँ।
मंजिलों की,
'तलाश या चाह' तो मुझे भी है मेरे 'अवचेतन',
मैं दिशाहीन जरूर हूँ,
किन्तु सदैव मेरे पथ पर 'अथक' रहता हूँ।।

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