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White झुलसती धरती दौषी कौन धरती को स्वर्ग बनाने

White झुलसती धरती दौषी कौन 

धरती को स्वर्ग  बनाने वालों,इससे जीवन को खतरा है।
तपती धरती गर्मी देखो भस्मासुर सा जलता दोषी कौन?
विकसित नगर बनाने वालों ,दरख्त  आज मिटाने वालों
जीवन जाए बनके स्मृतियां चुप क्यों बैठे हो साधे मौन?

धारा हुई गरम अब तुम देखो, झुलसा फिर जगमानव है।
काट काट कर नग्न नाच रहा बना आप खुद से दानव है।
आग लगी धरती पर देखो, झुलस रहा घिर जनजीवन है।
कब जाकर अब ये ठहरेगा बना भस्मासुर खुद जीवन है।
पशु पक्षी का जीवन बूंद बूंद जल को तरस रहा ये देखो।
आग लगी धरती पर सिकता सुखी नदियां यह भी देखो।

कल कल करती नदियों झरनों संगीत प्रकृति ने खोया है।
घट रही प्राणवायु ये मानस धरती पर प्राणों हित रोया है।
घटती जीवन की सांसें  कितने कोरोना रोग फिर जन्मेंगे।
नहीं रुक तुम देखो जीवन के लिए पल-पल फिर तड़पेंगे।
विकसित नगर बनाने वालों , दरख्त  आज मिटाने वालों
वायु पानी माटी और ध्वनि पर मंडराता जीवन खतरा है।

पोषण आहार विकार हृदयाघात विषाक्त पौन रुके सांस।
धरती मरघट रेती बंजर भूआपदा पहाड़ो में बाढ़ विनाश।
रोटी पानी कपड़ा प्रकृति संसाधन घटते भस्मासुर कौन?
जीवन जाए बनकर स्मृतियां चुप क्यों बैठे हो साधे मौन?

   के एल महोबिया

©K L MAHOBIA
  #दिल की कलम से:- के एल महोबिया
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K L MAHOBIA

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#दिल की कलम से:- के एल महोबिया #कविता

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