अजब दस्तूर दुनिया का अजब सी ये कहानी है सुनाता हूँ चलो तुमको मेरी आँखों मे पानी है ये मेरे शहर का मंजर बड़ा खामोश दिखता है कभी थी महफिले जवाँ अभी बूढ़ी जवानी है लोगो ने सिखलाया हमको,तुमको आगे बढ़ना होगा दुनिया आगे बढ़ती हर दिन कदम मिलाकर चलना होगा हमने भी पढ़ना लिखना सब इस मिट्टी में रहकर सीखा मगर छोड़ा है इसको की बहुत दौलत कमानी है सोचता हूँ अब की क्या खोया है क्या पाया है मैने अपनो को खोकर क्या कुछ भी कमाया है हाँ गाड़ी है,हाँ बंगला है मगर कुछ है अभी बाकी ना यहाँ माँ का आँचल है ना झरनों का पानी है अजब दस्तूर.... worthless...