मुफ़लिसी इस कदर मेरी अज़ीज़ हो गयी , नज़रो से गिर गए मेरे अमीर शाही ख़्वाब, वक़्त की गिरफ्त में गिरेबां मैली हो गई , रह गयी मेरे हिस्से की दुआएँ बेहिसाब, शख्सियत मेरी अब मज़ाक हो गयी, शायद खुदा ने कर ली तौबा रहमतो से जनाब, गुफ़्तगू की बसर एक मुद्दत हो गयी नज़रो से कर लेते है अब सवाल ओ जवाब who feel about?