वो अल्फ़ाज़ तुम्हारी मैं अब भुलाना चाहता हूँ वो जो "ख़त" जिसे छुये थे तुम्हारी हाथों ने सारे फ़र्ज़ी निकले वो जो "गुलाब"दिए थे ,मुझे कभी उसके सारे रंग ,कच्चे निकले और अब जिम्मेदारियां है मुझ पर मुझे जिम्मेदारी में ही रहने दो मैं पहले से ही जख्म लिए बैठा हूँ और अगर नासूर बनाना है ,तो बना दो पर याद रहे कही तुम्हारे दिल का जनाजा भी मेरे दुल से ना निकले ©@mahi #सवाल_तो_बहुत_सारी_है..