मैं आज उन्हीं लम्हों से होके गुजरा हूँ जैसे वर्षों बाद उस कहानी को आज फिर से जिया हूँ मंजिल भी वही है मुसाफिर भी मैं ही बना हूँ सफर भी है जाना पहचाना लेकिन आज एक अनजानी सी डगर हूँ वही बस , ट्रेन व सडकें प्रकृति की वही गमगीन शामें जर्रे जर्रे से आज जैसे मुखातिब हुआ हूँ सबने मिलकर मानो विरुद्ध मेरे गवाही दिए हों प्यारे अमर तुम ही गलत थे उस रोज वैसा तो कुछ भी हुआ ही नहीं था क्या उस कहानी को कभी फिर से पढ़ा तू वही खयालात वही सवालात आज भी है जेहन में आखों में आसूं आज भी वही है बस फर्क है उस दिन खुद से लड़ा था और आज पल पल सच से हारा हूँ लेकिन आज मैं एक मुसाफिर नया हूँ ग्लानि व पश्चाताप से घिरा पड़ा हूँ शायद मंजिल माफ कर भी दे मुझे लेकिन काश ही मैं खुद को माफ कर पाऊँ -Amar anand #मेरेएहसास #मेरे_जज्बात_मेरी_कलम_से भरोसा व विश्वास कभी भूलकर भी किसी का न तोड़ें विश्वास जीतकर भरोसे का खून कोई एक करता है और विश्वासी का विश्वास सारी दुनिया से उठ जाता है और उसके बाद सच्चे व अच्छे इंसान पर भी वह चाह कर भी भरोसा नहीं कर पाता है Note - विश्वासी व सच्चे स्नेहीजन आज भी हैं इस दुनिया में हर एक इंसान को संदेह के नजरिये से ना देखें (वरण सच्चे व अच्छे रिश्तों को खो देंगे आप भी बिल्कुल मेरी तरह) विश्वास पे दुनिया टिकी हुई है इसलिए भरोसा करें लेकिन सावधानी के साथ ।