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उसकी बातों से लगता था कि वो सिर्फ मेरी हैं कब उसकी

उसकी बातों से लगता था कि वो सिर्फ मेरी हैं
कब उसकी बातें और वो बदलीं 
पता नहीं चला|
मैंने तो सिर्फ बातें की थी उससे दोस्ती करने को,,
कब उससे इश्क़ हो गया
पता नहीं चला||
उसकी झील जैसी आंखों में ना जाने कितने डूबे होंगे
मैं भी कब डूब गया
पता नहीं चला|
उसके होठों से जैसे टपकता हो शहद, 
कितने डूबकर मर गये उस शहद के चक्कर में  पता नहीं चला||
वो एक अच्छे  बागान की कली है
ना जाने कितनी दूर गयी उसकी खुशबू,, 
कितने लोग कायल हुए उस खुशबू के,, 
पता नहीं चला|
वो जो कभी निकल पड़े सड़कों पर,तहलका मच जाए,, 
कितने घायल हुए,, 
कितनो का कत्लेआम हुआ
पता नहीं चला||

©Sudeep Mandrawaliya
   कविता-❤,,पता नहीं चला,, ❤

कविता-❤,,पता नहीं चला,, ❤

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