'पथिक' मंजिल मिलेगी गर भरोसा अपना हो, रोशनी होगी ही गर दीपक अपना हो! चलना संभल के मंजिल के राह पर राह एक नहीं हजार होंगी, बचाये रखना अपने आप को बारी एक नहीं अनेक होंगी। मंजिल मिलेगी गर भरोसा अपना हो, गीत गूंजेगी गर संगीत अपना हो! दुखों की राह पर चलना सुखों की पहचान है, आगे बढ़ना और बढ़ते रहना मंजिल पाने की पहचान है। मंजिल मिलेगी गर भरोसा अपना हो, अँधेरा में भी रोशनी होगी गर सूरज सपना हो! संकट में, सागर दिल में झांक कर देखना जो मन कहे, उसे मान कर देखना फिर अपना भी क्या?... राह और मंजिल दोनों अपनी होगी। डरना मत मिलेंगे हजार दुश्मन तुम्हारे, चलना संभल के मिलेगी मंजिल तुम्हारी! क्या है तुम्हारा अपना यहां पर?...यहां पर सब बेगाने हैं दिखते बाहरी अच्छे हैं, लेकिन अंदर से कोयला से भी काले हैं सूरत पर मत जाना बाबा ताले पड़े हैं, इनके दिलों पर। मंजिल मिलेगी गर भरोसा अपना हो, मंजिल पाना कठिन नहीं गर वादा अपना हो! गोलची, मेरी पुत्री की रचना है।शीर्षक और वर्तनी में मैंने सहयोग किया है। मंजिल दूर है, चलना जरूर है! मंजिल मिलेगी गर भरोसा अपना हो, रोशनी होगी ही गर दीपक अपना हो! चलना संभल के मंजिल के राह पर राह एक नहीं हजार होंगी,