#_जानें_अपने_वेदों_को नोट:- यह पोस्ट मैं वेदों को औपचारिक परिचय हेतु ऐसे सनातनी बंधुओं को ध्यान में रखकर लिख रहा हूँ जिन्हें वेदों का किसी भी तरह का ज्ञान नहीं है, अतः न्यूनाधिक जानने वाले बंधु आक्रमण की मुद्रा में ना आएं. 🙏 हमारी सनातन संस्कृति की धूरी हैं चार वेद. इन वेदों का क्रम बहुत सुव्यवस्थित है. कहा जाता है सृष्टि की रचना के पश्चात जगतपिता ब्रह्मा जी के मुख से यह वेद निकले थे, यह वेद सबसे पहले जिन चार महर्षि ने सुने उनके नाम अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा हैं. इन्हे क्रमशः ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का ज्ञान दिया गया, तत्पश्चात इन्ही चारों ने वेदों का मौखिक प्रचार किया. आगे चलकर अनेकों ऋषियों, मुनियों, महर्षियों और विदुषीयों ने वेदों को लिखा. चारों वेद में सर्वप्रथम #_ऋग्वेद का नाम आता है:- इसे विद्वानों ने ज्ञानकाण्ड भी कहा है. ऋग्वेद में प्रकृत्ति प्रदत्त पदार्थो (जिनमें जीव जन्तु भी हैं) के गुण और कर्म की व्याख्या की गई है, तथा किन पदार्थों का संबंध किन देवताओं से है इसे भी बताया गया है. ऋग्वेद में दर्शनशास्त्र, लौकिक ज्ञान, पर्यावरण तथा विज्ञान के विषय समाहित हैं. ऋग्वेद के कुछ सुक्त दो विद्वानों की चर्चा के रूप में प्रस्तुत किये गए हैं जैसे:- पुरुवा - उर्वशी संवाद यम - यमी संवाद सरमा - पाणि संवाद विश्वामित्र - नदि संवाद वशिष्ठ - सुदास संवाद अगस्त्य - लोपामुद्रा संवाद यह संवाद सुक्त नाटकों के मंचन का आधार माने जाते हैं. द्वितीय वेद है #_यजुर्वेद जब हम ऋग्वेद के द्वारा प्रकृति प्रदत्त पदार्थों के रूप, गुण व कर्मों को जान चुके होते हैं, उसे सामान्य जीवन में प्रयोग करने का क्रम आता है. अर्थात थ्योरी का ज्ञान लेने के बाद हमें प्रेक्टिकल करना होता है. इसलिये यजुर्वेद #_कर्मकाण्ड प्रधान ग्रंथ है. यजुर्वेद में दो शाखाएं हैं. 1:- कृष्ण यजुर्वेद 2:- शुक्ल यजुर्वेद इस वेद में यज्ञ करने की अनेक विधियों का वर्णन है. श्राद्ध, सेवा, तर्पण की महिमा यजुर्वेद ही बताता है. अग्निहोत्र, अश्वमेध, वाजपेय, सोमयज्ञ, राजसूय, अग्निचयन आदि यज्ञ के मुख्य स्वरूप हैं. कृष्ण यजुर्वेद में मंत्रों के साथ साथ तंत्रियोजक और ब्राह्मण ग्रंथों का भी सम्मिश्रण है. (यहां ब्राह्मण शब्द का अर्थ ब्राह्मण वर्ण से ना लें, यह ग्रंथ का प्रकार है). परंतु शुक्ल यजुर्वेद का स्वरूप विशुद्ध तथा अमिश्रित है. तृतिय वेद है #_सामवेद ऋग्वेद के ज्ञानयोग और यजुर्वेद के कर्मयोग के द्वारा हमें ईश्वर की मूल प्रकृति का बोध होता है. तब मन में भक्ति जागृत होती है. इस वेद में ज्ञानयोग, कर्मयोग और भक्तियोग की अद्भुत त्रिवेणी है. इसलिये इसे चारों वेदों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है. श्रीमद्भगवद्गीता में योगेश्वर श्री कृष्ण सामवेद की महत्ता बताते हुए कहते हैं वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासव अर्थात :- मैं वेदों में सामवेद हूँ, और देवताओं में देवराज इंद्र हूँ. सामवेद संगीत प्रधान है. समस्त स्वर, ताल, छंद, लय, गति, मंत्र, राग, नृत्य, मुद्रा तथा भाव आदि सामवेद से ही निकले हैं. सामवेद से ही संगीत के सात स्वर 1:- षडज् - सा 2:- ऋषभ - रे 3:- गांधार - गा 4:- मध्यम - मा 5:- पंचम - पा 6:- धैवत - धा 7:- निषाद - नि मिलते हैं. सामवेद में मात्र 99 मूलमंत्र हैं, बाकी मंत्र अन्य वेदों से आए हैं. सामवेद का उपनिषद छन्दोग्य उपनिषद सभी उपनिषद ग्रंथों में सबसे बड़ा है. ऐसा माना जाता है स्वयं भागवान शंकर ने रावण द्वारा विरचित शिव ताण्डव स्त्रोत को सुनकर उसे सामवेद को संगीतबद्ध करने का काम सौंपा था. वेदों के क्रम में चतुर्थ स्थान पर है #_अथर्ववेद ज्ञान, कर्म और भक्ति योग के अभ्यास से हमें विशिष्ट ज्ञान मिलता है जिसे विज्ञान कहा गया है. अथर्ववेद इस विषय विज्ञान का वर्णन करता है. यस्य राज्ञो जनपदे अथर्वा शांतिपारगः निवसत्यपि तद्राराष्ट्रं वर्धतेनिरुपद्रव्यम् अर्थात :- जिस राजा के राज्य में अथर्ववेद को जानने वाले विद्वान शांतिस्थापन के कर्म रहते हैं, वह राष्ट्र उपद्रवित (परिपूर्ण) होकर निरंतर उन्नति करता है. अथर्ववेद में भूगोल शास्त्र:- Geography वनस्पति शास्त्र:- Botany आयुर्वेद:- Medical Science राजनीति शास्त्र:- Political Science अर्थशास्त्र:- Economics राष्ट्रभाषा:- Linguistics शल्यक्रिया:- Surgery प्रजनन विज्ञान:- Genetics बाल चिकित्सा:- Pediatric कृमियों से उत्पन्न रोगों का विवेचन मृत्यु को दूर रखने के उपाय आदि वैज्ञानिक विषयों की व्याख्या है. अथर्ववेद की नौ शाखाएं हैं:- 1:- पैपल 2:- दान्त (दांत नहीं) 3:- प्रदान्त 4:- स्नात 5:- सौल 6:- ब्रह्मदाबल 7:- शौनक 8:- देवदर्शत तथा 9:- चरणविद्या इस तरह अथर्ववेद विज्ञान विषय ग्रंथ है. जब हम वेदों की बात करते हैं तो एक व्यक्ति का नाम वेदों से जुड़ा देखकर कई लोग आश्चर्य करेंगे. यहाँ उसका उल्लेख उसके महिमामंडन के लिये नहीं बल्कि सत्य लिखने के लिये कर रहा हूँ. रावण के सभी गुणों पर उसके अवगुण ज्यादा बड़े थे, इसलिये उसे महिमामंडित तो किसी भी सूरत में नहीं किया जा सकता. #_रावण एक ऐसा व्यक्ति था जिसने ना ही ऋषि मुनि महर्षि पद प्राप्त किया था और ना ही वह शुद्ध रक्त का मनुष्य था (वह ब्राह्मण पिता और असुर माता की संतान था), फिर भी वेदों के प्रति उसका कार्य अमूल्य है. कहा जाता है ऋग्वेद का प्रथम भाष्य लिखित रूप में रावण ने ही तैय्यार किया था. सामवेद को संगीतबद्ध करने का कार्य तो स्वयं महादेव नो रावण को दिया था. अथर्ववेद से संबंधित आयुर्वेद में रावण विरचित कई ग्रंथों को मान्यता दी गई है. यहां रावण विरचित कुछ ग्रंथों के बारे में लिख रहा हूँ जिन्हे मान्यता दी गई है. 1:- #_उड्डीशतंत्र:- उड्डीशतंत्र का उपदेश भगवान शंकर ने रावण को ही दिया था. जिसे उसने लिपिबद्ध कर उड्डीशतंत्र ग्रंथ की रचना की. इस ग्रंथ में औषधियों के साथ मंत्रों द्वारा रोगी का उपचार करने का वर्णन है. 2:- #_कुमार_तंत्र:- इस ग्रंथ में रावण मंदोदरी को शिशुरोग संबंधि जानकारी दे रहा है. यह ग्रंथ बालचिकित्सा (Pediatrics) विषय का विलक्षण ग्रंथ है. 3:- #_अर्क_प्रकाश :- (यह ग्रंथ मैं बचपन से अपने घर में देख रहा हूँ, दादाजी एक विख्यात वैद्य रहे हैं उन्ही के द्वारा लाया गया था) अर्क प्रकाश में 100-100 श्लोकों के 10 अध्याय में विभिन्न वनस्पतियों से अर्क निकालने की विधि वर्णित है. किस वनस्पति का अर्क उसकी किस दशा में निकाला जाना चाहिए और किस वनस्पति का अर्क किस पात्र में निकाला जाना चाहिये इसका विस्तृत विवरण इस ग्रंथ में है. 4:- #_नाड़ी_परीक्षा:- आप लोगों ने कभी ना कभी सुना होगा कि वैद्य केवल नाड़ी (नब्ज़) को पकड़कर शरीर के सभी रोग बता देते हैं, और उनका सटीक उपचार भी करते हैं. उसी विधा का ज्ञान यह ग्रंथ देता है. इस विधा में किसी भी तरह के पैथोलॉजी डायग्नॉस्टिक के बिना पूरे शरीर की जांच कर ली जाती है. 5:- #_अरूण_संहिता:- (यह ग्रंथ में मैं वर्षों से अपने घर में देख रहा हूँ, यह ग्रंथ मेरे पिताजी के कार्य ज्योतिष से संबंधित है) यह ग्रंथ लाल किताब के नाम से भी विख्यात है, सूर्य के सारथी अरूण द्वारा रावण को दिये गए उपदेश पर आधारित यह ग्रंथ ज्योतिष शास्त्र में विशेष स्थान रखता है. जन्म कुण्डली, हस्तरेखा तथा सामुद्रिक शास्त्र का अद्भूत मिश्रण लिये यह ग्रंथ अद्वितीय है. यह हमारे सनातन संस्कृति का सौन्दर्य है कि यहां किसी नकारात्मक व्यक्तित्व से भी सकारात्मक विषय ग्रहण किये जाते हैं. #_जय_सत्य_सनातन_धर्म_की लेखन - माधव मिश्रा जी दिनांक - ०५.११.२०२२ ---#_राज_सिंह_--- ©Raju Mandloi