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यथा सर्वगतं सौक्ष्म्यादाकाशं नोपलिप्यते। सर्वत्राव

यथा सर्वगतं सौक्ष्म्यादाकाशं नोपलिप्यते।
सर्वत्रावस्थितो देहे तथाऽऽत्मा नोपलिप्यते।।
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।13.33।।परमात्मा किसीकी भाँति न करता है और न लिप्त होता है इसपर यहाँ दृष्टान्त कहते हैं --, जैसे आकाश? सर्वत्र व्याप्त हुआ भी सूक्ष्म होनेके कारण लिप्त नहीं होता -- सम्बन्धयुक्त नहीं होता? वैसे ही आत्मा भी शरीरमें सर्वत्र स्थित रहता हुआ भी ( उसके गुणदोषोंसे ) लिप्त नहीं होता।
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©Kamlesh Kandpal
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