बाप के रवयै में कभी मतलब नही दिखता , वो ऐसा सौदागर है जो उधार नही लिखता । लाकर देता है सबकुछ जरुरत से ज्यादा , खुद की जरुरतों की दुकानों पर वो कभी नही रुकता । उसके जिस्मसे लहू पसीना बन के बहता है धूप में , पानी के वास्ते फिर भी उसका गला नही सूखता । बच्चों के अरमान कांधोपर ले दरबदर भटकता है वो , जिम्मेदारियों के सौ बोझ पेलते हूए भी वो कभी नही थकता । अंदरसे टूट जाता है बेइंतहासा शीशे के जैसा , मरकर भी इक मौत बेटी की बिदाई में वो कभी नही चिखता । कविराज ©HANAMANT YADAV (कवीराज) #FathersDay #fathers #father Riya Soni Dr. Sonia shastri सुमन Chaitali Yengade Anshu writer