अंबर कहे बादल से,तू शोर न मचाया कर बरसना है तो बरस खाली गर्जन न सुनाया कर, हरे भरे खेतों की आभा, खो सी गई है, कल-कल करती नदियां, सुखी हो सी गई है, ऐसे तो अकाल का,प्रकोप भड़क जाएगा, समय पे न बरसेगा तो, कौन तुझे अपनाएगा, सूखे दरख़्तों से घोंसले उजड़ जायेंगे, जग की न्यारी लाली में, पंछी कलरव कैसे गाएंगे, भारत सोने की चिड़िया है, ये मंत्र यही दर्शाता है, धरती सोना उगलेगी, जब बादल जल बरसाता है, लगता है तुम दूरगामी देशों के हो चुके हो, या शहर की चकाचौंध में, तुम भी खो चुके हो, धरा वियोगी हो गई है, मुरझाई सी सो गई है शीतल बरखा की बूंदों से,मिलन की आस में खो गई है, एक किसान का मकान, कर्ज और लगान बाकी है, बरस जाओ बादल, एक इम्तिहान अभी बाकी है , संगीता वर्मा ✍️✍️ ©Sangeeta Verma #tree #बादल #बरखा