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वो हमे मुल्क दे रहे थे हमारा घर छीन के पकिस्तान बन

वो हमे मुल्क दे रहे थे हमारा घर छीन के
पकिस्तान बना दिया भारत का दिल चीर के
भाई भाई अलग कर दिये हिन्दू मुसलमान सिख बोल के
वो हमें मुल्क दे रहे थे हमारा घर छीन के
कोई छुट गये  अटारी तो कोई लाहौर पहुँच गये
अपने ही कस्बे मे मारा सरेआम हमें काफिर बोल के
वो हमें मुल्क दे रहे थे हमारा घर छीन के
हकुमत के कुछ शातिरो ने खेल ऐसे खेले
कुछ दिलो की नफरतो ने खुद को तब्दील कर दिया सरहदो की लकीर में
वो हमें मुल्क दे रहे थे हमारा घर छीन के
कुछ अली मोहम्मद बिछड़े अम्मी से तो कुछ अमरो बिछड़ी अपनो से
वो अपनो की लाशों से गुजर रहे थे।उन्हे लावारिश छोड़ के
कुछ बही सिमट गये रूकती सासों में
प्यार बदल गये नफरत भरी  तलवारो मे
कुछ आँसु लिए भागे सब अपना छोड़ अपनी पुरानी उस जमीन पे
वो हमें मुल्क दे रहे थे हमारा घर छीन के
सन 47 के दिन आज भी दिल दहलाते है
जब भरे काफिले मे नन्हे मासूम के अपनो से हाथ बिछड़ते नजर आते हैं
दहशत उजाड़ गयी आशियाने अरसे से बसे इक दीन के
 वो हमे मुल्क दे रहे थे हमारा घर छीन के
कुछ नये हिन्दुस्तान भागे पुराने बसते हिन्दुस्तान से
कुछ भागे छोड़ घर नये बसे पकिस्तान में
इक पंजाब लहन्दा दुजा चड़दा कर दिया
साथ खेलते यारो का बड़ी दुर टिकाना कर दिया
बिछड़े ऐसे की आज भी पुराने उस घर की आयी याद मे आखों से समुद्र बहने लगे नीर के
वो हमें हिन्दूस्तान दे रहे थे हमारा घर छीन के
वो हमें पकिस्तान दे रहे थे हमारा घर छीन के
वो हमे मुल्क दे रहे थे हमारा घर छीन के
पकिस्तान बना दिया भारत का दिल चीर के
भाई भाई अलग कर दिये हिन्दू मुसलमान सिख बोल के
वो हमें मुल्क दे रहे थे हमारा घर छीन के
कोई छुट गये  अटारी तो कोई लाहौर पहुँच गये
अपने ही कस्बे मे मारा सरेआम हमें काफिर बोल के
वो हमें मुल्क दे रहे थे हमारा घर छीन के
हकुमत के कुछ शातिरो ने खेल ऐसे खेले
कुछ दिलो की नफरतो ने खुद को तब्दील कर दिया सरहदो की लकीर में
वो हमें मुल्क दे रहे थे हमारा घर छीन के
कुछ अली मोहम्मद बिछड़े अम्मी से तो कुछ अमरो बिछड़ी अपनो से
वो अपनो की लाशों से गुजर रहे थे।उन्हे लावारिश छोड़ के
कुछ बही सिमट गये रूकती सासों में
प्यार बदल गये नफरत भरी  तलवारो मे
कुछ आँसु लिए भागे सब अपना छोड़ अपनी पुरानी उस जमीन पे
वो हमें मुल्क दे रहे थे हमारा घर छीन के
सन 47 के दिन आज भी दिल दहलाते है
जब भरे काफिले मे नन्हे मासूम के अपनो से हाथ बिछड़ते नजर आते हैं
दहशत उजाड़ गयी आशियाने अरसे से बसे इक दीन के
 वो हमे मुल्क दे रहे थे हमारा घर छीन के
कुछ नये हिन्दुस्तान भागे पुराने बसते हिन्दुस्तान से
कुछ भागे छोड़ घर नये बसे पकिस्तान में
इक पंजाब लहन्दा दुजा चड़दा कर दिया
साथ खेलते यारो का बड़ी दुर टिकाना कर दिया
बिछड़े ऐसे की आज भी पुराने उस घर की आयी याद मे आखों से समुद्र बहने लगे नीर के
वो हमें हिन्दूस्तान दे रहे थे हमारा घर छीन के
वो हमें पकिस्तान दे रहे थे हमारा घर छीन के