मिट्टी की खुशबू से इश्क़ फ़रमाते कश्तियाँ कागज की अपनी तैराते खेतों में,नदियों में,उपवन में,आँगन में खुशियों का परचम फहराते जनाब वो भी क्या दिन थे । पेनों की तलवार चलाते बस्ते भर भर किताब ले जाते यारों के लिए किसी से भीड़ जाते समोसे कचौड़ी जलेबी गोलगप्पे खाते जनाब वो भी क्या दिन थे । एल अलग दुनिया बनाते ख्वाबों का पुलिंदा सजाते ऐसी-वैसी होगी जाने कैसी होगी नई जगह नए लोग नये यार संग दिल लगाते जनाब वो भी क्या दिन थे ..... वो भी दिन थे, क्या पलछिन थे। #वोभीदिनथे #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi #रूप_की_गलियाँ #rs_rupendra05 #वोदिन #किस्सा