ये दिल-नादां तेरी इल्तज़ा कर, तुझे पुकारता है, तू मशरूफ़ है अपनी जहां में, देख तुझें मैं अब भी अपनी जहां में माँगता हूँ... ~अकबर~ apni zahan me mashroof hai