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जब भी कहीं महफ़िल ए दर्द सजायी जाती है, मुझ जैसी ना

जब भी कहीं महफ़िल ए दर्द सजायी जाती है,
मुझ जैसी नाकाबिल शख्शियत ज़रूर बुलायी जाती है।

करता हूँ फ़िर नुमाइश मैं अपनी रूह के ज़ख्मो की,
फ़िर सर ए महफ़िल मेरी तक़लीफ़ पर ,ताली बजायी जाती है। #शायर 💕 "सर ए महफ़िल"☺️
जब भी कहीं महफ़िल ए दर्द सजायी जाती है,
मुझ जैसी नाकाबिल शख्शियत ज़रूर बुलायी जाती है।

करता हूँ फ़िर नुमाइश मैं अपनी रूह के ज़ख्मो की,
फ़िर सर ए महफ़िल मेरी तक़लीफ़ पर ,ताली बजायी जाती है। #शायर 💕 "सर ए महफ़िल"☺️