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कभी माँ के आँचल ने धूप और ताप में संभाला तो कभी ल

कभी माँ के आँचल ने धूप और ताप में संभाला 
तो कभी लड़खाड़ाते कदमों को पिता ने सहारा दिया
जो ना देख पाये नन्हें कदम दुनिया चल के तो
 पिता के कंधों ने ख़ुद पर बैठा लिया
माँ ने मेरे हर ख़्वाब को पलकों से लगा लिया
कभी जादू की झप्पी तो गुस्से वाली थपकी को भी दुलार से पिला दिया
सुख हो या कि हो दुःख की  स्याह घनघोर घटा
दोनों ने हर पल साथ रहकर हौसला दिया उसे बाँट लिया
दुनिया जहां की बेतुकी बातों को मंद शीतल पवन सा बहा दिया
नादाँ बचपन हो या हो अल्हड़ जवानी या फिर जर्जर होता बुढ़ापा
 ज़रूरत ना हो हमें हमारे पालक/ संरक्षक कीकभी ऐसा नहीं होता। 
हे अभिभावक...! 
हमारे अंतिम क्षण में हमारे अंतिम श्वास में भी आप ही हो
दुनिया आपके अभाव में मेरी सदा है अधूरी 
आप हैं तो कभी कोई आस नहीं रहती अधूरी
हे पालक...! 
आपको कोटिशः प्रणाम..! आपको कोटिशः प्रणाम..!

©Shipra Pandey ''Jagriti' #maaPapa 

कभी माँ के आँचल ने धूप और ताप में संभाला 
तो कभी लड़खाड़ाते कदमों को पिता ने सहारा दिया
जो ना देख पाये नन्हें कदम दुनिया चल के तो पिता के कंधों ने ख़ुद पर बैठा लिया
माँ ने मेरे हर ख़्वाब को पलकों से लगा लिया
कभी जादू की झप्पी तो गुस्से वाली थपकी को भी दुलार से पिला दिया
सुख हो या कि हो दुःख की  स्याह घनघोर घटा
कभी माँ के आँचल ने धूप और ताप में संभाला 
तो कभी लड़खाड़ाते कदमों को पिता ने सहारा दिया
जो ना देख पाये नन्हें कदम दुनिया चल के तो
 पिता के कंधों ने ख़ुद पर बैठा लिया
माँ ने मेरे हर ख़्वाब को पलकों से लगा लिया
कभी जादू की झप्पी तो गुस्से वाली थपकी को भी दुलार से पिला दिया
सुख हो या कि हो दुःख की  स्याह घनघोर घटा
दोनों ने हर पल साथ रहकर हौसला दिया उसे बाँट लिया
दुनिया जहां की बेतुकी बातों को मंद शीतल पवन सा बहा दिया
नादाँ बचपन हो या हो अल्हड़ जवानी या फिर जर्जर होता बुढ़ापा
 ज़रूरत ना हो हमें हमारे पालक/ संरक्षक कीकभी ऐसा नहीं होता। 
हे अभिभावक...! 
हमारे अंतिम क्षण में हमारे अंतिम श्वास में भी आप ही हो
दुनिया आपके अभाव में मेरी सदा है अधूरी 
आप हैं तो कभी कोई आस नहीं रहती अधूरी
हे पालक...! 
आपको कोटिशः प्रणाम..! आपको कोटिशः प्रणाम..!

©Shipra Pandey ''Jagriti' #maaPapa 

कभी माँ के आँचल ने धूप और ताप में संभाला 
तो कभी लड़खाड़ाते कदमों को पिता ने सहारा दिया
जो ना देख पाये नन्हें कदम दुनिया चल के तो पिता के कंधों ने ख़ुद पर बैठा लिया
माँ ने मेरे हर ख़्वाब को पलकों से लगा लिया
कभी जादू की झप्पी तो गुस्से वाली थपकी को भी दुलार से पिला दिया
सुख हो या कि हो दुःख की  स्याह घनघोर घटा

#maaPapa कभी माँ के आँचल ने धूप और ताप में संभाला तो कभी लड़खाड़ाते कदमों को पिता ने सहारा दिया जो ना देख पाये नन्हें कदम दुनिया चल के तो पिता के कंधों ने ख़ुद पर बैठा लिया माँ ने मेरे हर ख़्वाब को पलकों से लगा लिया कभी जादू की झप्पी तो गुस्से वाली थपकी को भी दुलार से पिला दिया सुख हो या कि हो दुःख की स्याह घनघोर घटा #कविता