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अकेले बैठे-बैठे मन में अकेलापन छा जाता है। तब क

अकेले बैठे-बैठे 
मन में 
अकेलापन छा जाता है।
तब 
कुछ खास 
आभास होता है।
जिस्म पड़ जैसे 
हवा का झोका छेड़ रहा हो।

अकेले बैठे-बैठे मन में अकेलापन छा जाता है। तब कुछ खास आभास होता है। जिस्म पड़ जैसे हवा का झोका छेड़ रहा हो। #Poetry

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