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#उसकी_छोटी_बहन पीर का दिन है मेरी छुट्टी का और य

#उसकी_छोटी_बहन 

पीर का दिन है मेरी छुट्टी का
और ये दिन तय शुरू से बिल्कुल नहीं
चार या पाँच साल के अन्दर 
इसमें तब्दीलियां भी आई है 
जैसे यमुना विहार की जानिब 
अपनी  छुट्टी जुमे को करते थे 
आज फिर अपने कारखाने से 
मैं निकलकर जो रोड़ पर आया 
देखता हूं कि उसकी छोटी बहन 
तेज़ रफ़्तार जल्दी जल्दी से 
बिन किसी डर के अपने घर की तरफ 
जा रही थी मगर कहाँ और क्यूँ 
उसके अब्बू ने वो मकां बेच दिया 
अब इधर जाके ये करेगी क्या 
बस यही देखने की खातिर तो 
उसके पीछे ही चल दिया था मैं 
कि इन्होंने नया मकां शायद
मुस्तफाबाद में लिया होगा 
मुस्तफाबाद पार करके नया
अब पुराने में आ गए थे हम
उस गली से जो रोड़ दिखता था 
वो करावल नगर का रस्ता था 
उसकी छोटी बहन तो बेचारी 
देखता हूँ कि इस इलाके में 
सिर्फ ट्यूशन ही पढने आई है 
सिर्फ ट्यूशन ही पढने आती है
आएशा जब कहीं  मिलेगी मुझे 
मैं उसे एक बात बोलूँगा 
लडकियों का मकान से अपने 
एक प्वाइंट छः किलोमीटर 
पढने जाना सही नहीं जानाँ 
ये  फकत एक नज़्म है मेरी 
ये खुदा की वही नहीं जानाँ


#साहिल_इस्लाम_वाजिदपुरी #कविता
#उसकी_छोटी_बहन 

पीर का दिन है मेरी छुट्टी का
और ये दिन तय शुरू से बिल्कुल नहीं
चार या पाँच साल के अन्दर 
इसमें तब्दीलियां भी आई है 
जैसे यमुना विहार की जानिब 
अपनी  छुट्टी जुमे को करते थे 
आज फिर अपने कारखाने से 
मैं निकलकर जो रोड़ पर आया 
देखता हूं कि उसकी छोटी बहन 
तेज़ रफ़्तार जल्दी जल्दी से 
बिन किसी डर के अपने घर की तरफ 
जा रही थी मगर कहाँ और क्यूँ 
उसके अब्बू ने वो मकां बेच दिया 
अब इधर जाके ये करेगी क्या 
बस यही देखने की खातिर तो 
उसके पीछे ही चल दिया था मैं 
कि इन्होंने नया मकां शायद
मुस्तफाबाद में लिया होगा 
मुस्तफाबाद पार करके नया
अब पुराने में आ गए थे हम
उस गली से जो रोड़ दिखता था 
वो करावल नगर का रस्ता था 
उसकी छोटी बहन तो बेचारी 
देखता हूँ कि इस इलाके में 
सिर्फ ट्यूशन ही पढने आई है 
सिर्फ ट्यूशन ही पढने आती है
आएशा जब कहीं  मिलेगी मुझे 
मैं उसे एक बात बोलूँगा 
लडकियों का मकान से अपने 
एक प्वाइंट छः किलोमीटर 
पढने जाना सही नहीं जानाँ 
ये  फकत एक नज़्म है मेरी 
ये खुदा की वही नहीं जानाँ


#साहिल_इस्लाम_वाजिदपुरी #कविता