-------: सबेरे-सबेरे:------ है शुक्र हैं वे पड़ोसी हमारे, कि मिलतीं हैं नज़रें सबेरे-सबेरे। लव उनके यूं अक्स फूलों का जैसे, कि मिलती है खुशबू सबेरे-सबेरे।।1।। उन्हें सब पता हम पड़ोसी हैं उनके, कि तबस्सुम की चोट पर चोट देते। अभी ज़ख़्म कल के भर भी न पाए, कि फिर चोट खाई सबेरे-सबेरे।। आंखें उनींदीं खुली अधखुली सी, मिलाते हैं जब वे सबेरे-सबेरे। "पवन"शर्म ऐसी छुपा करके चेहरा, झुका लेते पलकें सबेरे सबेरे ©Pawan Yadav written by pawan yadav kavita #sagarkinare