"नाजायज़ ही सही पर प्यार
था तुमसे, यहां लोगों को बेसब्री थी हमे
अलग करने की, वहां जो भी बचा जायज़ साथ था मेरा"
न जानें क्यों ऐसा लगता है
कि हम दोनों में बस मैं ही रह
गई हूं!
अकेली थकी, गिरती, बिलखती और खुद को संभालते संभालते आज भी सह रही हूं ! #Poetry