जनहित की रामायण- 27 तेल खाने का हो या जलाने का, जनता का निकाल रहा है तेल ! हे मस्त मग्न इवीएम के चहीते, आखिर कब रुकेगा ये खेल ? जन ने गलती की होती तो भुगत लेता, पहली बार का कष्ट जन झेल चुका ! इस बार तो उसने ग़लत नहीं किया था, इस बार की अखर रही है उसे सजा !! सहन किया घर बचत पर डला डाका, कर्जकिश्तों में ब्याज पूरा जा रहा आंका ! महामारी में बची खुची जेब भी कट गई, सहन नहीं हो रहा रोज़ रोज़ का फाका !! नये कर्जों के बोझ तले भी दबी है जनता, आगे ढंग से जीवन कोई नहीं जी सकता ! नियम बना दिये गये हैं ऐसे एक से एक, जिनमें कोई समृद्ध रह ही नहीं सकता !! महंगाई मार से पूंजी रोज़ कम होती है, घर में रकम रक्खें तो दिन दिन घटती है ! बैंक ब्याज भी महंगाई दर से कम मिलता, यानि बैंक में भी रकम बढ़ नहीं सकती है !! बैंक जमा में 5 लाख तक की है सुरक्षा, आजकल बैंक रातों रात बंद हो जाया करता ! आज नियम है कोई किसी को कर्ज न दे सकता, अब बेभरोसे वाले बैंक का ही पर्याय बचता !! नेता अफसर पत्रकार और बड़े बड़े उद्योगपति, दोनों हाथों समेट रहे हैं सारी की सारी समृद्धि ! जुटा पाना दूभर है जन को दो जून की रोटी, कविताओं में सिमटी रह गई बातें जनहित की !! -आवेश हिन्दुस्तानी 15.6.2021 ©Ashok Mangal #AaveshVaani #JanhitKiRamayan #inflation #JanMannKiBaat