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पल्लव की डायरी कितने संघर्ष करते बालम बोझ गृहस्थी

पल्लव की डायरी
कितने संघर्ष करते बालम
बोझ गृहस्थी का सम्हाले है
तय नही घण्टे काम के
घूट खून के पीकर 
इन जंजालों ने
सुख के क्षण गवाँ डाले है
जालिम व्यवस्था ने 
भले चंगे  इंसानों को
कोल्हू के बैल बना डाले है
चिंता की रेखा बल देती मेरे
वैवाहिक जीवन मे नरक घोल डाले है
सुनवायी नही कही शोषण की
पेशेवरों के आगे हथियार सरकारो ने डाले है
                                                     प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
  #umeedein भले चंगे इंसानों को कोल्हू के बैल बना डाले है
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