छिप-छिप अश्रु बहाने वालों ! मोती व्यर्थ बहाने वालों ! कुछ सपनों के मर जाने से , जीवन नहीं मरा करता है । सपना क्या है , नयन सेज पर सोया हुआ आँख का पानी और टूटना है उसका ज्यों जागे कच्ची नींद जवानी गीली उमर बनाने वालों ! डूबे बिना नहाने वालों ! कुछ पानी के बह जाने से , सावन नहीं मरा करता है । माला बिखर गयी तो क्या है खुद ही हल हो गयी समस्या आँसू गर नीलाम हुए तो समझो पूरी हुई तपस्या रूठे दिवस मनाने वालों ! फटी कमीज़ सिलाने वालों ! कुछ दीपों के बुझ जाने से , आँगन नहीं मरा करता है। खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर केवल जिल्द बदलती पोथी जैसे रात उतार चांदनी पहने सुबह धूप की धोती वस्त्र बदलकर आने वालों ! चाल बदलकर जाने वालों ! चन्द खिलौनों के खोने से , बचपन नहीं मरा करता है । लाखों बार गगरियाँ फूटीं , शिकन न आई पनघट पर , लाखों बार किश्तियाँ डूबीं , चहल-पहल वो ही है तट पर , तम की उमर बढ़ाने वालों ! लौ की आयु घटाने वालों ! लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है। लूट लिया माली ने उपवन , लुटी न लेकिन गन्ध फूल की , तूफानों तक ने छेड़ा पर , खिड़की बन्द न हुई धूल की , नफरत गले लगाने वालों ! सब पर धूल उड़ाने वालों ! कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पण नहीं मरा करता है !