ख़ामोशी भरे उन बातोँ का उन तन्हा तन्हा रातों का हिसाब भला हम क्या देंगे अबके तुमने ख़त लिख्खा तो ज़वाब भला हम क्या देँगे। उन अश्कों की बरसातों का वो मायूसी भरे लम्हातों का वो होली के फ़ीके रंगों का उन धूमिल परे उमंगों का हिसाब भला हम क्या देंगे अबके तुमने ख़त लिख्खा तो ज़वाब भला हम क्या देँगे। वो अंतर्मन के सूनेपन का उन राह ताकती अँखियन का वो गुज़रे बीते सालों का उन तेरे मासूम सवालों का हिसाब भला हम क्या देंगे अबके तुमने ख़त लिख्खा तो ज़वाब भला हम क्या देँगे। ये जो थोड़ी सी दूरी है मेरी भी मज़बूरी है। कई बार ख़यालों में जाके सोचा था तुमसे मिल करके सारे मशले सुलझा लेंगे। अबके तुमने ख़त लिख्खा तो ज़वाब भला हम क्या देँगे। मेरे इस बोझिल से मन से दीवाल टंगी उस दर्पण से कहीँ झाँकती तेरे नैनन में कुछ प्रश्न तुम्हारे टोकेंगे हम मौन खड़े फिर सोचेंगे गर अबके तुमने ख़त लिख्खा तो ज़वाब भला हम क्या देँगे।। #ख़त