राष्ट्र पर्व का उल्लास है हमारी एकता का पर्व प्रदर्शन भाव आश्रित हो इस बार स्पष्टता चाहता है पारंपरिक अनुभूति से रीति का वो रसायन चाहता है जो हमारी मौलिकता है जो अचानक से विकासशील होते-होते नष्ट नहीं हुआ है, विलुप्त नहीं हुआ है शंका भर भ्रष्ट हुआ, थोड़ा अपवित्र हुआ अब भड़क रहा है, अग्नि धारित है जला रहा है अपरिचित स्तर को पूर्वी मान मन बना रहा है, गौण है स्वतंत्रता दिवस पर पवित्र गंगा का चौखट छुकर विशुद्ध हो रक्षा में आक्रमण करेगा सब एक बोली बोलेगा दस मुंह वाले का मर्दन होगा तथाकथित रसायन का विसर्जन होगा चेतन युद्ध होगा, चैतन्य का आह्वाहन होगा नवग्रह प्रतिष्ठित होंगे झंडे से एक पुष्पांजलि श्रद्धा सुमन अर्पित होगा विष्णु का अवतार होगा तिरंगा लहरायेगा ।। हम अपनी गति पाएंगे! 🌻🌻💟🇮🇳💟🌻🌻 राष्ट्र पर्व का उल्लास है हमारी एकता का पर्व प्रदर्शन भाव आश्रित हो इस बार स्पष्टता चाहता है पारंपरिक अनुभूति से