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तेरी यादों के ताज को, मैं रोज़ ही, तामीर करता हूँ।

तेरी यादों के ताज को,
मैं रोज़ ही,
तामीर करता हूँ।

उस तामीर किये,
ताज में,
इधर उधर बैठ के,
ना जानें कितने,
ख़्वाब बुनता हूँ।

बिखेर देता है कोई,
चुपके से,
यादों के ताज को,
कौन है वो?
रूबरू कभी आता नहीं।

शायद वक्त ही होगा,
जो अब मेरा नहीं।

©ANAND KUMAR #तेरी  यादों का ताज...
तेरी यादों के ताज को,
मैं रोज़ ही,
तामीर करता हूँ।

उस तामीर किये,
ताज में,
इधर उधर बैठ के,
ना जानें कितने,
ख़्वाब बुनता हूँ।

बिखेर देता है कोई,
चुपके से,
यादों के ताज को,
कौन है वो?
रूबरू कभी आता नहीं।

शायद वक्त ही होगा,
जो अब मेरा नहीं।

©ANAND KUMAR #तेरी  यादों का ताज...
anandkumar9513

ANAND KUMAR

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