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भगवान जी, सही बोला था आपने, शेष अनुशीर्षक में प

भगवान जी,
सही बोला था आपने,



शेष अनुशीर्षक में पढ़िए भगवान जी,
आपने सत्य बोला था, कि इंसान आपको केवल दुख तकलीफ में ही याद करता है। इतना स्वार्थी हो गया है इंसान की ज़रा सा कुछ कर ले तो मैं में मिमियता रहेगा, और ज़रा कष्ट आया नहीं कि हाथ धो के आपके पीछे पड़ जाता है। ऐसा मन तो नहीं दिया था आपने, आपने ज़रा सी ढील क्या दो इंसान को कि इंसान खुद को आपकी जगह पर स्थापित करने लगता है।
देखो ना मैने आपके कहने पे सबको एक ख़त लिखने को बोला आपको
आपके कहने से पुरस्कार भी रख दिए, देखो देखो इंसानों के नखरे देखो लिख के ही राज़ी नहीं, और जब समय सीमा खत्म हो जाएगी फिर बोलेंगे समय कम दिया था😊
असल में सबको न अपना अपना एजेंडा चलाना है यहां पर ।
ये जो मन है ना बड़ा बदमाश है ये....बहुत खेल खेलता है, नेताओं की तरह।
मन की राजनीति आप भी नहीं समझ पाओगेप्रभु।
 एक सरल सी चीज को हमने इतना उलझा दिया है कि सुलझाने के लिए अब हम जाने कैसे कैसे स्वांग करते रहते हैं
भगवान जी,
सही बोला था आपने,



शेष अनुशीर्षक में पढ़िए भगवान जी,
आपने सत्य बोला था, कि इंसान आपको केवल दुख तकलीफ में ही याद करता है। इतना स्वार्थी हो गया है इंसान की ज़रा सा कुछ कर ले तो मैं में मिमियता रहेगा, और ज़रा कष्ट आया नहीं कि हाथ धो के आपके पीछे पड़ जाता है। ऐसा मन तो नहीं दिया था आपने, आपने ज़रा सी ढील क्या दो इंसान को कि इंसान खुद को आपकी जगह पर स्थापित करने लगता है।
देखो ना मैने आपके कहने पे सबको एक ख़त लिखने को बोला आपको
आपके कहने से पुरस्कार भी रख दिए, देखो देखो इंसानों के नखरे देखो लिख के ही राज़ी नहीं, और जब समय सीमा खत्म हो जाएगी फिर बोलेंगे समय कम दिया था😊
असल में सबको न अपना अपना एजेंडा चलाना है यहां पर ।
ये जो मन है ना बड़ा बदमाश है ये....बहुत खेल खेलता है, नेताओं की तरह।
मन की राजनीति आप भी नहीं समझ पाओगेप्रभु।
 एक सरल सी चीज को हमने इतना उलझा दिया है कि सुलझाने के लिए अब हम जाने कैसे कैसे स्वांग करते रहते हैं

भगवान जी, आपने सत्य बोला था, कि इंसान आपको केवल दुख तकलीफ में ही याद करता है। इतना स्वार्थी हो गया है इंसान की ज़रा सा कुछ कर ले तो मैं में मिमियता रहेगा, और ज़रा कष्ट आया नहीं कि हाथ धो के आपके पीछे पड़ जाता है। ऐसा मन तो नहीं दिया था आपने, आपने ज़रा सी ढील क्या दो इंसान को कि इंसान खुद को आपकी जगह पर स्थापित करने लगता है। देखो ना मैने आपके कहने पे सबको एक ख़त लिखने को बोला आपको आपके कहने से पुरस्कार भी रख दिए, देखो देखो इंसानों के नखरे देखो लिख के ही राज़ी नहीं, और जब समय सीमा खत्म हो जाएगी फिर बोलेंगे समय कम दिया था😊 असल में सबको न अपना अपना एजेंडा चलाना है यहां पर । ये जो मन है ना बड़ा बदमाश है ये....बहुत खेल खेलता है, नेताओं की तरह। मन की राजनीति आप भी नहीं समझ पाओगेप्रभु। एक सरल सी चीज को हमने इतना उलझा दिया है कि सुलझाने के लिए अब हम जाने कैसे कैसे स्वांग करते रहते हैं