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न पद है कोई विशेष, नाही ख़त कोई शेष जिससे उल्लेख क

न पद है कोई विशेष,
नाही ख़त कोई शेष
जिससे उल्लेख करु अपना महत्व!

न है वो दो मृग नैन,
न चंचल बयार की रैन
जिसके चंद्र में खिले मेरा मुख-मंडल।

न तरल है हृदय मेरा,
न शोख से है चित्त भरा,
बस सरल प्रेम बना है मेरा एक गौण।

न रूप किसी शशि विधा,
न अधर मेरे कमल सुधा,
सौंदर्य और कुरूप के मध्य हूं अदृष्ट।

न शीत की हूं मै तिमिर,
न ग्रीष्म की ताप अनल,
क्या प्राप्त होता प्रेम में, सामान्यता को पद?  न पद है कोई विशेष,
नाही ख़त कोई शेष
जिससे उल्लेख करु अपना महत्व!

न है वो दो मृग नैन,
न चंचल बयार की रैन
जिसके चंद्र में खिले मेरा मुख-मंडल।
न पद है कोई विशेष,
नाही ख़त कोई शेष
जिससे उल्लेख करु अपना महत्व!

न है वो दो मृग नैन,
न चंचल बयार की रैन
जिसके चंद्र में खिले मेरा मुख-मंडल।

न तरल है हृदय मेरा,
न शोख से है चित्त भरा,
बस सरल प्रेम बना है मेरा एक गौण।

न रूप किसी शशि विधा,
न अधर मेरे कमल सुधा,
सौंदर्य और कुरूप के मध्य हूं अदृष्ट।

न शीत की हूं मै तिमिर,
न ग्रीष्म की ताप अनल,
क्या प्राप्त होता प्रेम में, सामान्यता को पद?  न पद है कोई विशेष,
नाही ख़त कोई शेष
जिससे उल्लेख करु अपना महत्व!

न है वो दो मृग नैन,
न चंचल बयार की रैन
जिसके चंद्र में खिले मेरा मुख-मंडल।
shrutigupta6452

Shruti Gupta

New Creator