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दूर से जिन पर घिनौने शब्द बरसाते है फिर सामने आने


दूर से जिन पर घिनौने शब्द बरसाते है
फिर सामने आने पर जाने कैसे नजरें मिलाते है
तोड़ कर मर्यादा की सारी सीमाएं जिन पर लांछन लगाते है
अपनी चंद निजी स्वार्थ के लिए परिवार भी बीच में लाते हैं
फिर सामने आने पर जाने कैसे नजरें मिलाते हैं
चढ़ते स्टेज पर अपनी औकात भूल जाते हैं
अपने- अपने जातियों को आपस में लड़वाते है
चमचों द्वारा अपने एक दूसरे के परिवार पर उंगली  उठाते हैं
फिर ना जाने कैसे एक दूसरे को भाई कहकर बुलाते हैं
सामने देख एक दूसरे को नजरें शरमाई नहीं
गले से लगाते वक्त अपनी बोली बातें क्या याद आई नहीं
चलो अच्छा हुआ एक हुए तो सही
पर क्या भरोसा दोबारा उठेंगे धुएं ये नहीं
भोजपुरी इंडस्ट्री है  साहब बदलने में वक्त नहीं लगता
- चित्रांगद

©R.V. Chittrangad Mishra 9839983105
  
दूर से जिन पर घिनौने शब्द बरसाते है
फिर सामने आने पर जाने कैसे नजरें मिलाते है
तोड़ कर मर्यादा की सारी सीमाएं जिन पर लांछन लगाते है
अपनी चंद निजी स्वार्थ के लिए परिवार भी बीच में लाते हैं
फिर सामने आने पर जाने कैसे नजरें मिलाते हैं
चढ़ते स्टेज पर अपनी औकात भूल जाते हैं
अपने- अपने जातियों को आपस में लड़वाते है

दूर से जिन पर घिनौने शब्द बरसाते है फिर सामने आने पर जाने कैसे नजरें मिलाते है तोड़ कर मर्यादा की सारी सीमाएं जिन पर लांछन लगाते है अपनी चंद निजी स्वार्थ के लिए परिवार भी बीच में लाते हैं फिर सामने आने पर जाने कैसे नजरें मिलाते हैं चढ़ते स्टेज पर अपनी औकात भूल जाते हैं अपने- अपने जातियों को आपस में लड़वाते है #विचार

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