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अंतर्मन की सुनो" हाड़ मांस का पुतला है ये दिल, इस

अंतर्मन की सुनो"

हाड़ मांस का पुतला है ये दिल, इससे भी 
जाने अनजाने में ,कभी गलतियां हो जाती हैं ।
ऐसा वक्त भी आता है, होश नहीं रहता दिल
 को पिघल के सांसें अग्नि शिखा में बह जाती हैं।

 ना कोई ग्लानि, न पश्चाताप, मधुर पलों की 
चिरस्थाई ,यादें बनकर बस हृदय में रह जाती हैं 
दोष नहीं होता उस क्षण का,अकस्मात की
 घटना, स्वीकारोक्ति कहती  है "अंतर्मन की सुनो"।

©Anuj Ray
  # अंतर्मन की सुनो"
anujray7003

Anuj Ray

Bronze Star
New Creator

# अंतर्मन की सुनो" #कविता

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