जमाने के खातिर हम जिए जा रहे है कह न पाएं लबो को हम सिए जा रहे है होती है चुभन देख दर्द ओ सितम को है आंखो में नमी हर अश्क पिए जा रहे है न है ज्ञान मुझको किसी भी तरह का सुन दिल की हर बाते हम किए जा रहे है है राहों में कांटे हर डगर हर सफर में फिर भी हर नसीहत हम लिए जा रहे है बड़ी शिद्दतो से भरी परवाज़ मैंने उसे अपनो की ओर अब किए जा रहे है नहीं है मिला मुझको साथ किसी का अब बस रब के सहारे जिए जा रहे है अतीत को खंगालू खुद को संवारुं उसमे ही खुद को खुश किए जा रहे है।। अंजली श्रीवास्तव