बेफिक्री राहों में नादान सी ये ख्वाहीशों को साथ लिए हिज्र की मुंतजिर हूं अब्र का टुकड़ा हैं सपनों से भरा, आखिर कब तक कितनों पे बरसे? ना जाने क्युं, फासलों में ही अपनापन ढूंढना अब आदत सी हो गई हैं शायद, तन्हाइयों की खामोशियों को हमसे लगाव हो गया है बेशक, जूनुन से सुकून मिले फिर भी, हर हर्फ तन्हा सा हैं जैसे, कोई नज्म़ कोरे कागज़ पर अनलिखी हो, और भुली भी नहीं जाती ऐसी दास्तान अधूरी होकर भी, अपनेआप में ही मुकम्मल हैं एक अधूरे फसाने की तरह, एक अनकही नज्म़ की तरह। सिर्फ एक नगमा हैं, प्यार का। हिज्र की ऊंची दीवारें।💛 #Yqhindi #Yqbaba