दुनिया में इस तरह से लोग सरकार चलाते थे, अपनी ताक़त से पूरा दयार नचाते थे, तारीख़ के पन्नों में थककर सोये हैं, जो अपने बाज़ुओं से कभी दीवार गिराते थे, वृद्धाश्रम में वो लोग भी क़ैद हैं, जो कभी अपना पूरा परिवार चलाते थे, अपने हुजरे में बैठें हैं चिराग़ों को बुझाकर, जो बच्चों संग हर एक त्योहार मनाते थे, वक़्त के साथ ढल गईं उनकी भी उम्रें, जो आईने के सामने घण्टों श्रृंगार कराते थे, उखड़ रहीं हैं उनकी क़ब्रों की ईंटें, जिनके नाम की लोग जय जयकार लगाते थे, वो लोग भी ख़ाक में मिल गये "शहनवाज़", जो घोड़ों पर बैठकर तलवार चलाते थे। (शहनवाज़ खान) #poetryking