करके वफ़ा के वादे, जाने क्यूँ वो भूल जाते हैं। जब भी हम उनसे पूछते हैं, वो तो मुस्कुराते हैं। चाहत की हर बात को, वो तो झूठा बताते हैं। उन्हें तो आशिक़ी के, सितम भी खूब आते हैं। मुनासिब नहीं लगता, मुझे उनका यूँ इतराना। नज़ाक़त भरी अदाओं से वो दिल को दुखाते हैं। हमारा क्या है हम तो उन्हें आज भी चाहते हैं। वो ज़ालिम खुद को, किसी और का बताते हैं। कहने को आसान है करके दिखाएँ तो मैं मानू। क्या मेरी तरह वो भी, अब तन्हा रह पाते हैं। तक़लीफ़ नहीं मुझको इस वादा-खिलाफ़ी से। बस ये इश्क़ के इल्ज़ाम ही हमको रुलाते हैं। मोहब्बत पाक थी मेरी, मगर उनको यकीं न था। तभी तो आज भी बेवफाई की तोहमत लगाते हैं। करो जितने बनते हो, सितम तुम सब कर डालो। तुम्हारे हर सितम को हम, अब दिल से लगाते हैं। ♥️ Challenge-701 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।