'सत्य' और 'विवेक' जीवन के दो बिल्कुल भिन्न पहलू, अलग तथ्यात्मक परिस्थितियां हैं.… सत्य का अनुकरण आपके सामाजिक सम्मान एवं उन्नति के मार्ग को कठिन बनाएगा... बाधाओं परेशानियों को न्योता देगा, सत्य की सहज अभिव्यक्ति अति दुष्कर है, आप सत्यानुकरण के पश्चात भी पूर्ण सत्य अभिव्यक्त नही कर सकेंगे, पूर्ण सत्य नग्न है और हमारे समाज मे नग्नता पर निषेध है फिर वो सत्य की ही क्यों न हो । विवेक आपको सत्य पर अल्पारोपण कर मूल से भिन्न किन्तु मूल के समतुल्य ही अभिव्यक्ति का एक मार्ग देता है विवेक छल का भी सहारा लेता है विवेक कुटिलता लिए हुए भी सहज है किंतु सत्य सात्विक होकर भी सहज स्वीकार्य नहीं, विवेक मुख्यतः मनोनुकूल कार्य सिद्धि में सहायक है एवम विवेक युक्ति का जन्मदाता भी है..विवेकी व्यक्ति सफलता हेतु अपना ध्येय/ लक्ष्य हासिल करने को मार्ग में परिवर्तन भी करता है और अंततः लक्ष्य तक मार्ग प्रशस्त कर ही लेता है, सत्यधारक के लिए यह स्वतन्त्रता नही इसलिए सत्य धारण को 'तप' की श्रेणी में रखा गया। सत्य की अपनी गरिमा है अपना स्थान है किन्तु जीवन को जटिलता से भर देता है और विवेक आपके जीवन को सहज सफल बनाने का माध्यम बनता है शायद इसलिए विवेकी व्यक्ति सत्य को दम्भ जानता है जीवन की जटिलता अगर सत्य से बढ़ती हो तो विवेक उत्कृष्ट है सत्य से.. मैं 'सत्य' का विरोधी नहीं अपितु 'सहज जीवनशैली' का समर्थक हूँ...!!! 'मनु'