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लबों पर आ कर भी , वो लफ़्ज़ों से बया ना हो सके .

लबों पर आ कर भी ,
वो लफ़्ज़ों से बया ना हो सके  .

दिल टूटा, बहुत टूटा ,
फिर भी हम ना रो सके  .

उनको पाने की ख्वाहिश को  ,
ख्वाबों में भर कर आए थे  .

दिल दे कर भी रोते रहे 
सिर्फ दर्द ही हमने पाए थे  .

उनकी खुशी के लिए  ,
घूंट-घूंट कर हर पल जिया था .

उनकी हँसी के लिए ,
हमने आंसुओं को भी पिया था  .

इश्क़ के इसी मिट्टी पे ,
हमने मौत का बीज यू बोया था .

ये दर्द हैं किस ज़ख्म का ,
दिल  तड़प- तड़प कर रोया था  .

©Âmâr Đeép
  #zidagi  Rati Mishra