आ ज़िन्दगी बैठ थोड़ी बात करते है मानस-पटल में सुबिचारो का सागर भर हृदय-कमल में अमर ज्योति जलाते है आज एक नया इतिहास लिखते है। आ ज़िन्दगी बैठ थोड़ी बात करते है गुनाहों के उड़ते पंख को मुट्ठी में मसल सुकून के सफर का मनोरम राह ढूंढ़ते है वर्तमान हालातो की आवाज लिखते है। आ ज़िन्दगी बैठ थोड़ी बात करते है समूचे धरा को रँग-बिरंगे दरख़्त से ढक हरियाली के दामन को अनुपम आयाम देते है प्रकृति के स्वर्णिम काल का आगाज लिखते है। आ ज़िन्दगी बैठ थोड़ी बात करते है अस्त्र व शस्त्र को श्मशान के ठिकाने कर अर्धनग्न देह पर मंजुल वस्त्रों को चढ़ाते है मानवता का एक पुनीत रिवाज लिखते है। आ ज़िन्दगी बैठ थोड़ी बात करते है कच्चे बिचारो के अनुपजाऊ बंजर मिट्टी में उर्वरा से पोषित पक्के बिचारों का बीज बोते है बिचारों के फसल की आभा का अंदाज लिखते है। आ ज़िन्दगी बैठ थोड़ी बात करते है मुस्कानों का मनोरम सा तान छिड़ककर होंठो के सन्तूर को सब मिल बजाते है वक्त की पुकार का नूतन अल्फाज लिखते है। ~आशुतोष यादव #वक्त_की_पुकार #वक्त_की_मांग #worldpostday Sudha Tripathi Ruchika Kittu❤