[दहेज एक प्रथा या कुप्रथा] दहेज लेनेवाले से ज़्यादा, देनेवाले भी क्या कम है, बेटी को बेटे से कमजोर मानकर, अपने खोखले सोच को श्रेष्ठ जानकर, पैदाइश से ही उसे कर्ज का बोझ मानकर, जोड़ते धन जीवन भर हैं!! फ़िर एक दिन अपनी मर्जी को, उस बेटी पे थोपने को, खुद जाते दहेज के मंडी को, अपनी बेटी बेचने को!! अगर पहले से खर्च करते आते उस पैसे को, उसे स्ववलंबी और आत्मनिर्भर बनाने को, तो आज उसकी मर्ज़ी और स्वावलंबता के आगे, स्वयं आते लड़के उस पिता के चरणों को, बिन दहेज उनकी बेटी मांगने को!! #दहेज्_एक्_प्रथा [दहेज एक प्रथा या कुप्रथा] दहेज लेनेवाले से ज़्यादा, देनेवाले भी क्या कम है, बेटी को बेटे से कमजोर मानकर, अपने खोखले सोच को श्रेष्ठ जानकर, पैदाइश से ही उसे कर्ज का बोझ मानकर,