किताबों की बात ही कुछ और है जहां हम अपने आप को समर्पित कर देते हैं .... जिस प्रकार प्रियवंद सौंप देता है स्वयं को उस विशाल किरीट से बनी वीणा को, " किताबें यह मेरी गोद रखी रहे किन्तु मैं तो इनकी ही शरण गया हुआ नादान परिंदा हूं" जब भी करता हूं सफर मैं इनके साथ लगता है जिंदगी की गाड़ी "वन्देभारत" एक्सप्रेस की तरह सरपट दौड़ी चली जा रही है जब तक सफर में हूं लगता है जिंदगी एक मेला है लेकिन जैसे ही साथ छूटा जीवन फिर से अकेला है जब तक अंदर है सब कुछ शांत है जैसे ही इन से बाहर निकले ऐसा लगता है मानो गमों की मूसलाधार बारिश हो रही है और हम बिना छाते के "स्टेच्यू सर्किल"(जयपुर) पर खड़े हैं किसी छाते के इंतजार में✍️✍️✍️✍️✍️✍️ #शेखावत #Vo_mere_pass_aaye